श्रीयंत्र में चार ऊपर की ओर मुख किये हुए तथा पाँच नीचे की ओर मुख किये हुए त्रिभुज है, जो क्रमशः शिव (पुरूष या पौरूष ऊर्जा) और शक्ति (प्रकृति या स्त्री ऊर्जा) को दर्शाता है।
यह नौ परस्पर मिलने वाले त्रिभुज (जो परिणाम स्वरुप 43 छोटे त्रिभुज बनाते है) शिव-शक्ति के सार को दर्शाते है। अतः श्रीयंत्र की संरचना में इन त्रिभुजों का समवर्ती तथा संकेंद्रित होना आवश्यक है। समवर्त तथा संकेंद्रियता पौरुष एवं स्त्री ऊर्जा को संतुलित करने तथा शांति और सामंजस्य फैलाने के लिये आवश्यक होते है।
साथ ही मध्य के त्रिभुज को जिसे “त्रिकोण“ कहा जाता है, समभुज त्रिभुज होना चाहिए।